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गुरुवार, 24 जुलाई 2014

चालान

सर सर 
आपने मुझे ही क्यों पकड़ा 
इतने लोग तेजी से 
चले जा रहे है 
उनपर आप ध्यान 
नहीं दे रहे है 

चुप रहो 
ट्रैफिक हवलदार मै हूँ 
कि तुम 
यह कौन डिसाइड करेगा 
किसे पकड़ना है 
किसे छोड़ना है 
मै कि  तुम 

ये सब साले 
इतनी तेजी से भागे जा रहे है 
मानो नंबर दो से  परेशान  है 
पर टैफिक नियम की 
वही सब तो धज्जियाँ 
उड़ा रहे है 

अरे यार 
कब समझोगे तुमसब 
इन्हे पकड़ कर 
अपनी जान देनी है क्या 
चाहता है हमें भी 
आसान टारगेट 
लक्ष्य पूरा कर 
बचाना है अपना मार्केट 
इसलिए फॉरगेट 
चलो निकालो 
दिखाओ अपने कागजात 
अपडेट 

हतप्रभ मै 
डिग्गी खोल रहा था 
मेरे सामने ही सैकड़ो वाहनो का 
काफिला सरपट जा रहा था 
जबकि मै सामान्य गति से 
ट्रैफिक नियमो के अनुसार 
कार्यालय की ओर 
अग्रसर था 

रास्ते में आये 
स्पीड ब्रेकर को धीमी गति से 
क्रॉस करने का प्रयास 
कर रहा था 
और तभी इनका शिकार 
बन गया था 

सब कागज 
मय हेलमेट के सही 
होने के बाद भी 
दो दिन पहले ही 
एक्सपायर हो चुके 
इन्शुरन्स के एवज में 
अपना चालान 
कटवा रहा था 
जबकि इसी के लिए आज 
रास्ते में रहते हुए 
एजेंट से मिलने हेतु 
कार्यालय के लिए मै 
थोड़ा जल्दी ही 
निकल पड़ा था 

निर्मेष 

गुरुवार, 17 जुलाई 2014

कचकच

अउर बचवा 
का हाल बा 
तोहरे महतारी के 
घर अउर गॉव के 
प्रेम को देख 
दीनानाथ ने उसे
इस बार 
अच्छे से पहचान
लिया था 
पर वह था कि 
अपने ठीक हो चुके 
पिता को देख 
घबरा रहा था 

ठीक है बाबूजी 
सब ठीके जा रहे है 
धीरज रखे 
हम आपके छुट्टी का 
कागज बनवा कर 
बस दो मिनट में 
रहे है 
कहते हुए प्रेम 
जो गया 
तो आज दो साल 
बाद भी पलट कर 
नहीं आया 

वर्षों पहले 
पत्नी की एकाएक 
मौत के बाद 
दीनानाथ का मानसिक 
संतुलन बिगड़ गया था 
उसकी पत्नी नहीं रही 
उसका मन यह 
मानने को तैयार ही 
नहीं था 

पत्नी की सलाह पर 
प्रेम ने पिता को 
मानसिक अस्पताल में 
करा दिया था 
बीच बीच में 
पिता के ठीक होने की 
अपने इष्ट से 
दुआ करते हुए 
पिता से भेंट मुलाकात का
फर्ज निभाता रहा

माँ तो 
जा ही चुकी थी  
बाबू के पागलखाने 
पहुँचाने के बाद से 
सुनीति के जीवन में 
रौनक चुका था 
नित्य ही डिनर के लिए 
पूरा परिवार 
कैफे जा रहा था 

कोइ हाय 
कोई कचकच 
दूर हो चुका था 
उनके जीवन से 
तथाकथित हर 
चकचक 

उधर ठीक हो चुका
दीनानाथ 
पुनः सदमे में 
गया था 
नित्य ही वह अपनी 
पैकिंग करता 
और खोलता 
घर जाने के रंगीन 
सपने देखता था 
अपने साथियों से 
अपने पोते पोतियों की 
जुड़ी यादें 
शेयर करता
उनसे पुनः  
मिलने की बात करता
नहीं अघाता  
और उनसे मिलने की 
अंतहीन प्रतीक्षा
करता 


निर्मेष 

बौद्धिक आतंकवाद

कल की
अनचाही बातों और 
घटनाओं ने मुझे रात में 
बेचैन करने का प्रयास किया 
पर मैंने हमेशा की तरह 
एक बार फिर अपने आप को 
सर झटक कर समझा लिया 
ईश्वर को साक्ष्य मान 
दूसरे के अपराध को भी
आत्मसात कर लिया 

चल पड़ा है 
बौद्धिक आतंकवाद का 
यह सिलसिला 
कि नीति हमेशा 
छद्म शक्ति का गुलाम रहा 
कुछ लोग स्वयं को 
सर्वशक्तिमान समझते है 
पर शायद उन्हें पता नहीं कि 
अति आत्मविश्वास और 
अति आत्ममुग्धता के 
अन्तस्तल में ही 
विनाश के बीज पनपते है 

एक स्याह रात के उपरांत 
ऊर्जावान प्रात 
आसन्न होता है 
तन मन प्रफुल्लित और 
प्रसन्न होता है 
जिसमे धैर्यवान वीर्यवान 
बुद्धिवान शीलवान और विवेकी 
व्यक्तित्व ही फलता है 
लम्बा रास्ता तय करता है 
तभी तो भौतिक जीवन के उपरांत भी 
राम कृष्ण और गांधी को 
समय सदियों सहेजता है 
पर उलट प्रवृत्ति को 
कौन याद रखता है 

अफ़सोस तब और होता है 
जब निरक्षरों को कौन कहे 
पढ़े लिखे लोग 
विवेकहीन व्यक्ति 
अपनी संस्कृति का वास्ता देकर 
साइत और अपशकुन की 
बात करता है

वस्तुतः ऐसे लोगो को 
अपने कर्म पर विश्वास नहीं होता 
भौतिक दांव पेंच से अगर 
कुछ पा लिया तो 
उसे खोने से डरते है 
दूसरे के कंधे के भरोसे 
आगे निकल कर उस कंधे को 
पीछे धकेल देते है 

बहुत दिनों के बाद 
माँ के स्पर्श का 
अनुभव मैंने पाया 
जब खिड़की से आती 
मंद पछुआ ने मुझे जगाया 
अपने शाश्वत लक्ष्य पर बढ़ने 
निडर कर्मपथ पर 
चलने को सुझाया 

याद आया 
पापा ने एक बार 
सत्य ही कहा था 
कि कभी कभी ऐसे दिन भी 
अच्छे होते है 
जो आत्ममंथन के साथ 
व्यक्ति के जीवन को 
पटरी पर रखने का 
काम करते है 

निर्मेष