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शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

मौलिक बचपन

अनवरत चल रहा था
बधाइयों का ताता
करीब में ही खड़े थे पाँच वर्षीया
अंकुर के दादी दादा
यानि मेरे माता पिता
उपहारों को अंकुर थैंकू के साथ पकडाता
उन्हें अहिस्ता से किनारे रखता
अंत में एक बड़े उपहार की
आशा में बेचैन
मुखातिब थे मेरी ओर उसके नैन
सोच रहा था पापा इस बार अवश्य ही
करेंगे गिफ्ट कुछ खास
जिसकी रही है उसे
पिछले कई दिनों से आस
मैंने इस बार अंकुर के लिए
समय के साथ चलते हुए एक बड़ा सा
टेडी बियर पैक कराया था
सोचा था इसे देख अंकुर
ख़ुशी से झूम उठेगा
उसकी आतुरता और उत्सुकता को
और बढ़ाते हुए मैंने तत्परता से
अपने पापा के साथ मिलकर
उसे वह पैकेट थमाया
बेचैन अंकुर ने उसे बिना देर किये
जिग्यसवास तुरन्त ही खुलवाया

ह्वाट इस दिस
इस इट गिफ्ट फार ह्वीच
आई वाज सो एगरली वेटिंग
रियली पापा टू सी इट आई एम्
बीइंग सो डिसअप्वैन्टिंग
मै तो सोच रहा था कि अन्दर
मिनी लैपटॉप या इपोट जैसे
इलेक्ट्रोनिक इटेम होगे
आखिर पापा अप कब मैच्योर होगे

हतप्रभ मै
उसकी बात सुन रहा था
समय से पूर्व उसकी मच्योरिटी पर
मै दंग हो रहा था
डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत का
सतत निरूपण मै देख रहा था
एक फल सीधे बिना फूल बने ही
फल में रूपांतरित हो रहा है
कैसा होगा भविष्य ऐसे फलो का
उसमे वांछित सद्गुणों का

बेशक मेहमानों ने उसकी बात को
हसी में टाल दिया था
वह भी नाराज होकर
अपने कमरे में चला गया था
मेरे माँ बापू ने उसे मनाने हेतु
उसके कमरे की ओर
उसका अनुगमन किया था

इस घटना को नजरंदाज कर
भार्या ने मेहमानों की ओर
अपना रुख किया
इस अनायास अप्रत्याशित आक्रमण से
आक्रांत और आंदोलित मै
घटना के विश्लेषण में लग गया

आज के बच्चे
कितनी तेजी से युवा बनने को
बेचैन दिख रहे है
समय से पूर्व तेजी से मच्योर होकर
क्या अपना मौलिक बचपन
नहीं खो रहे है
माँ के लोरियों की ताकत से अंजान
मिकेल जेक्सन के गीतों पर
ही क्यों सो रहे है
पर सच्चाई यह है कि
जिस बचपन को हमने पूरी सिद्दत से
खेत खालिहोनो से लेकर
गलियों और स्कूलों में भरपूर है जिया
उसे आज का बच्चा है खो रहा
लग रहा था कि समय का चक्र
अपनी निर्धारित गति से काफी
तीव्रतर हो गया है
ऐसा क्यों लग रहा है कि
एक बीज अंकुरित होते ही सीधे
वृक्ष बनाने को व्यग्र दीख रहा है
अगर बन भी गया तो क्या
वह मानसिक और शारीरिक रूप से
इतना सबल होगा कि
अपनी तमाम जिम्मेदारियों को
उठाने में सक्षम होगा

पता नहीं क्यों मुझे तो
बस यही लग रहा था कि
आज का युवा जो अपनी पारिवारिक
और सामाजिक जिम्मेदारियों से
दूर भाग रहा है
वृद्ध आश्रमों कि कल्पना को
साकार कर रहा है
कही वह ऐसे ही कच्चे विकास का
परिणाम तो नहीं है

पूरे देश में चाचा नेहरु का जम्दीन
आज तो मुझे समझ में रहा था
पर आज का बच्चा बड़े साफगोई से
निर्मल और निश्छल बाल दिवस कि
नयी परिभाषा बता रहा था

3 टिप्‍पणियां:

Pallavi saxena ने कहा…

यही तो है आज की जनरेशन, चिंतनीय अभिव्यक्ति ....समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

आपको पढना सुखद अनुभव देता है।
अच्छा विषय और बेहतर प्रस्तुति
शुभकामनाएं

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

बहुत सुन्दर दृश्य दिखाया आप ने निर्मेश जी
आभार
भ्रमर ५
जिस बचपन को हमने पूरी सिद्दत से
खेत खालिहोनो से लेकर
गलियों और स्कूलों में भरपूर है जिया
उसे आज का बच्चा है खो रहा
लग रहा था कि समय का चक्र
अपनी निर्धारित गति से काफी
तीव्रतर हो गया है