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मंगलवार, 2 अगस्त 2011

एक गिलास पानी



आज सुबह से ही
भयंकर उमस थी
गर्मी भी बेजार बरस रही थी
एक गवाही के चक्कर में
मुझे कचहरी जाना था
तैयार होकर ऑटोरिक्शा कि प्रतीक्षा
बेसब्री से कर रहा था
तभी एक
कृशकाय बूढ़े जर्जर व्यक्ति
को कंधे पर लादे एक युवक आया
साथ में उसकी पत्नी
बनी हुई थी हमसाया
बोली अरे जल्दी करो
नहीं तो कही यहीं मर गया
तो समझो सब गुड गोबर हो गया
मै आश्चर्य से उन्हें देख रहा था
चाह कर भी उनकी परेशानियों को
नहीं भाप पा रहा था

एक ऑटोरिक्शा आता दिखा
दौड़ कर उसकी भार्या ने उसे रोका
किराया तय किये बिना ही
सब उस पर सवार हो गए
उसे कचहरी चलने का
आदेश दे दिया
में भी दौड़ कर उसी ऑटो में
सवार हो गया

गाड़ी आगे बढ़ी
मेरी भी वेदना बढ़ने लगी
मुझे तो लग रहा था कि
ये सब अस्पताल जाना है चाहते
पर कचहरी जाने कि बातें
मेरे समझ के बाहर हो गयी
खैर बात आयी गयी

कचहरी पहुँच कर मैंने
अपना काम निपटाया
पुनः वही से अपने कार्यालय
मुझे जाना भाया
तभी रजिस्ट्री कार्यालय के बाहर
मेरी नजर पड़ी
देखा तो वह महिला वही थी खड़ी
निकट उसके वह वृद्ध
मरणासन्न था पड़ा
मैंने उत्सुकतावश
उस महिला से कहा
मैडम कौन है ये इन्हें यहाँ के बजाय
अस्पताल क्यों नहीं ले जाते
बोली पाहिले रजिस्ट्री तो करवा ले
पेपर सब तैयार होई रहा
एक घंटे में सब काम होई जाइये
तब बड़का बाबु के हम आराम से
अस्पताल ले जइबे
नहीं तअस्पताल के चक्कर में
हमरा सब काज अजिहे
बिगड़ जाइये

मै स्तब्ध हो गया
खेल अब सारा समझ में आ गया
मैंने कार्यालय जाना
स्थगित कर दिया था
पता करने पर उन्हें उस
वृद्ध का भतीजा पाया था
उस वृद्ध कि अपनी कोई
संतान नहीं थी
पत्नी दस वर्ष पूर्व ही भगवन को
प्यारी हो गयी थी
पिछले दो सप्ताह से उसकी भी
तबियत ख़राब चल रही थी
चाचा भातीचे के बीच संपत्ति को लेकर
रस्साकस्सी चल रही थी
पहले संपत्ति उसके नाम
करने कि शर्त पर ही
इलाज और आगे के सेवा की
बात तय हुई थी
इसी निमित्त उनसबका यहाँ आगमन था
मै विस्मृत सारा दृश्य
किसी सिनेमा की तरह देख रहा था
तभी वृद्ध के मुख से
एक गिलास पानी की आवाज आयी
बहू बोली तनिको मत घबराई
बस थोरिके देर मा
सब काम होई जाइये
तब तुमका हम पानी के बजाय
समोसा अउर लस्सी खियेबे

मैंने कहा भद्रे कम से कम
उन्हें पानी तो पिला दीजिये
उसने कहा की आप
बीच में ना ही पड़िए
अब सब काम होई गवा है
तोहे इतना चिंता काहे है
मैंने अफ़सोस से अपना गर्दन हिलाया
उसके लिए एक गिलास पानी के
इंतजाम में चला गया
लौटने पर उसकी गर्दन को बेलाग
एक और झुका देखा
मेरा माथा ठनका
तभी उसका bhateeja कागज लेकर
उसकी और हस्ताक्षर के लिए दौड़ा था
पर वह तो निढाल हो
शायद अपनी सहचरी के पास
चल दिया था

उन दोनों के कलेजे में
एक हूक सी उठती दिखी
उसे वही बेमुरवत छोड़
उन्होंने अपने घर की raah की थी

में शांत हो
एक गिलास पानी की
कीमत देख रहा था
भावनाओं पर आकांछाओं की
विजय को स्पष्ट
देख रहा था

3 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

मार्मिक प्रस्तुति

SAJAN.AAWARA ने कहा…

sanvedansheel rachna..,.
jai hind jai bharat

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बड़ा ही मार्मिक विवरण।