सोमवार, 31 मई 2010
बुधवार, 26 मई 2010
जाति आधरित जनगणना क्यूँ???
हमारे देश की सबसे बड़ी विशेषता है अनेकता में एकता !इसीलिए अंग्रेज कभी भी हमें बाँट नही पाए ,लेकिन आखिर में उन्होंने फूट डालो और राज़ करो का सहारा लिया!आज हमारे नेता फिर उसी रास्ते पर चल रहे है!देश में फिर जाति आधारित जनगणना की बात उठाई जा रही है!पूरे विश्व में कहीं भी जाति को इतना महत्त्व नही दिया जाता,जितना की हमारे देश में!हर जाति का एक अलग संगठन बना है....जैसे ब्रह्मण समाज,अग्रवाल समाज,प्रजापत समाज आदि!ये समाज अपनी अपनी जाति के विकास के लिए प्रयत्न करते है ...ठीक है पर क्या समाज को इस तरह बांटे बिना विकास नही हो सकता? जनगणना को जातीय आधार पर करना बिलकुल उचित नही होगा!इससे पहले से ही विभिन्न वर्गों में विभाजित समाज में और दूरियां बढ़ेगी! आज अलग अलग जातियों को लेकर जिस तरह से पंचायतें हो रही है और आरक्षण को लेकर राजनीती हो रही है,वो इस निर्णय से और बढ़ेगी ये सब हमारे एकीकृत समाज के लिए घातक होगा!
राष्ट्रीयता की भावना के विकास के लिए समाज को जातिविहीन करना ही होगा! जनगणना में जाति को शामिल करने से और भी बहुत सी विसंगतियां पैदा हो जाएगी!नेता लोग और खाम्प पंचायतें जातिगत जनगणना का दुरूपयोग करेंगे! देश में पहले ही जाति को लेकर आरक्षण की मांग हो रही है,जो और बढ़ेगी! आज जरूरत इस बात की है क़ि हम समाज की भलाई के लिए इसे जातियों में ना बांटे!विकासशील देश इतना विकास इसी लिए कर पाए क्यूंकि वहां जातिगत राजनीती नहीं है!तो फिर हम क्यूँ अभी भी विभिन्न वर्गों में बँटे रहना चाहते है?!सबको समानता का अधिकार भी सबको समान मानने से ही मिलेगा,विभाजित करने से नही!!जाति आधारित जनगणना किसी भी सूरत में उचित नही है!!
रविवार, 23 मई 2010
दादी का प्यार
दादी मेरी - दादी मेरी,
बहुत प्यार करती थी हमको!
रोज सुबह-सुबह जगाकर,
सैर कराती थी हमको !!
कभी नहीं डाटती हमको,
खूब प्यार जताती थी !
घर में सब लोगों को,
प्यार से समझाती थीं !!
विषम परिस्थितियों में भी,
हिम्मत बहुत बढाती थीं !
कभी न हिम्मत हारो तुम,
ऐसा पाठ पढ़ाती थीं !!
(समर्पित दादी माँ)
बहुत प्यार करती थी हमको!
रोज सुबह-सुबह जगाकर,
सैर कराती थी हमको !!
कभी नहीं डाटती हमको,
खूब प्यार जताती थी !
घर में सब लोगों को,
प्यार से समझाती थीं !!
विषम परिस्थितियों में भी,
हिम्मत बहुत बढाती थीं !
कभी न हिम्मत हारो तुम,
ऐसा पाठ पढ़ाती थीं !!
(समर्पित दादी माँ)
रविवार, 9 मई 2010
मदर्स डे पर शुभकामनायें !!
बुधवार, 5 मई 2010
गाँधी : नेक्ड एम्बिशन
कितने अफ़सोस की बात है कि जिन्हें हमारा देश राष्ट्रपिता कहता है और पूरी दुनिया जिन्हें सत्य, अहिंसा और सदाचार का प्रतिक मानती है उन्हीं गांधी जी के बारे में निहायत ही घटिया शब्दों में एक ब्रिटिश इतिहासकार जेड एडम्स ने 'गाँधी : नेक्ड एम्बिशन' नामक अपनी पुस्तक में तथ्यों को तोड़ मरोड़कर एक ऐसा चित्र प्रस्तुत किया है जिसमें गांधी को युवा नग्न औरतों के साथ नहाने वाला और रात को अपने अनुयायी आदमियों की जवान पत्नियों को अपने बिस्तर पर सुलाने वाला इंसान बताया है.
समझ में नहीं आता है कि विवादस्पद कथनों से सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाली किताबें/लेखक क्यों बढ़ते जा रहे हैं ? विदेशी तो विशेषकर हमारे धीरज का इम्तिहान लेते है और वे शायद बर्दाश्त नहीं कर सकते कि हमारे बापू को मानने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है. शायद जेड एडम्स की भी यही मानसिकता रही हो. इन्हें शायद एक बार नए सिरे से गांधी को पढ़ना चाहिए. ऐसा डायना और डोडी अल फय्याद या फिर बिल क्लिंटन जैसे लोग पश्चिम में करते होंगे, यहाँ नहीं. और फिर इस किस्म का घृणास्पद लेखन तो असहनीय है.
मैंने एक बार गांधी जी पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लिया था जिसमें फरेद्रेग शिगोवोकी, स्वर्गीय निर्मला देशपांडे, महामहिमप्रतिभा पाटिल जैसी हस्तियों ने गांधी जी पर अपने विचार बांटे थे. इन तीन दिनों में गांधी जी को जानने और समझाने का भरपूर मौका मिला था और गांधीजी के काफी अनछुए पहलू भी जानने का मौका मिला, मगर ऐसा न कहीं पढ़ा और न सुना. फिर पता नहीं किस तरह से और कहाँ से जेड एडम्स ने ये सब जुटाया है.क्या यह खिलवाड़ नहीं हमारे आदर्शों पर. हम गांधी जी के सपनों का भारत कितना तैयार कर पाएं हैं यह अलग से चिंता और चिंतन का विषय है मगर क्या राष्ट्रपिता पर इस तरह कोई कलम चलाये,हमें स्वीकार करना चाहिए?
फ़िलहाल तो यह पुस्तक भारत में नहीं आई है, अगर यहाँ पहुंचती है तो क्या छवि प्रस्तुत होगी ?
ऐसी दुष्प्रवृत्तियों का आप सब अपने अपने स्तर पर विरोध करें. पश्चिमी देश के लोग शायद यह भूल गए हैं कि यह गुलाम भारत नहीं अपितु एक तेजी से बढ़ रहा अमनपरस्त मुल्क है और यह सब अब सहन नहीं होगा .
(जिस अखबार में यह छपा है उसका लिंक गाँधी : नेक्ड एम्बिशन )
जितेन्द्र कुमार सोनी
प्रवक्ता - राजनीति विज्ञान
समझ में नहीं आता है कि विवादस्पद कथनों से सस्ती लोकप्रियता बटोरने वाली किताबें/लेखक क्यों बढ़ते जा रहे हैं ? विदेशी तो विशेषकर हमारे धीरज का इम्तिहान लेते है और वे शायद बर्दाश्त नहीं कर सकते कि हमारे बापू को मानने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है. शायद जेड एडम्स की भी यही मानसिकता रही हो. इन्हें शायद एक बार नए सिरे से गांधी को पढ़ना चाहिए. ऐसा डायना और डोडी अल फय्याद या फिर बिल क्लिंटन जैसे लोग पश्चिम में करते होंगे, यहाँ नहीं. और फिर इस किस्म का घृणास्पद लेखन तो असहनीय है.
मैंने एक बार गांधी जी पर आयोजित अन्तरराष्ट्रीय सेमिनार में भाग लिया था जिसमें फरेद्रेग शिगोवोकी, स्वर्गीय निर्मला देशपांडे, महामहिमप्रतिभा पाटिल जैसी हस्तियों ने गांधी जी पर अपने विचार बांटे थे. इन तीन दिनों में गांधी जी को जानने और समझाने का भरपूर मौका मिला था और गांधीजी के काफी अनछुए पहलू भी जानने का मौका मिला, मगर ऐसा न कहीं पढ़ा और न सुना. फिर पता नहीं किस तरह से और कहाँ से जेड एडम्स ने ये सब जुटाया है.क्या यह खिलवाड़ नहीं हमारे आदर्शों पर. हम गांधी जी के सपनों का भारत कितना तैयार कर पाएं हैं यह अलग से चिंता और चिंतन का विषय है मगर क्या राष्ट्रपिता पर इस तरह कोई कलम चलाये,हमें स्वीकार करना चाहिए?
फ़िलहाल तो यह पुस्तक भारत में नहीं आई है, अगर यहाँ पहुंचती है तो क्या छवि प्रस्तुत होगी ?
ऐसी दुष्प्रवृत्तियों का आप सब अपने अपने स्तर पर विरोध करें. पश्चिमी देश के लोग शायद यह भूल गए हैं कि यह गुलाम भारत नहीं अपितु एक तेजी से बढ़ रहा अमनपरस्त मुल्क है और यह सब अब सहन नहीं होगा .
(जिस अखबार में यह छपा है उसका लिंक गाँधी : नेक्ड एम्बिशन )
जितेन्द्र कुमार सोनी
प्रवक्ता - राजनीति विज्ञान
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हलचल
सोमवार, 3 मई 2010
युवाओं से...
आकाश में उड़ान लेते वक्त
तेरे मजबूत कंधे पर
तेरे मजबूत कंधे पर
आकाश भार ले
तू कल का भविष्य
देश का वर्तमान आधार
कर्तबगार........
तू परिवर्तनशील समाज दायरे का
मध्यबिंदु
तू क्रांति के सपनों का
साध्यबिंदु....
तेरे रग-रग में बहती खून की
गरमी
तेरे रोम-रोम में जवानी जोशीली
सहमी-सहमी....
तुझे असत्यं का पर्दाफाश करना है
सत्यम शिवम् सुंदरम से
तुझे भ्रष्टाचार का तम मिटाना हैं
क्रांति की मशाल से.......
अब तुझे से ही आशा है
तुझे देश की धारा में बहना है !!
मीना खोंड, हैदराबाद
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कविता,
रश्मि सिंह
शनिवार, 1 मई 2010
मजदूर (विश्व मजदूर दिवस पर)
जब भी देखता हूँ
किसी महल या मंदिर को
ढूँढने लगता हूँ अनायास ही
उसको बनाने वाले का नाम
पुरातत्व विभाग के बोर्ड को
बारीकी से पढ़ता हूँ
टूरिस्टों की तीमारदारी कर रहे
गाइड से पूछता हूँ
आस-पास के लोगों से भी पूछता हूँ
शायद कोई सुराग मिले
पर हमेशा ही मिला
उन शासकों का नाम
जिनके काल में निर्माण हुआ
लेकिन कभी नहीं मिला
उस मजदूर का नाम
जिसने खड़ी की थी
उस मंदिर या महल की नींव
जिसने शासकों की बेगारी कर
इतना भव्य रूप दिया
जिसकी न जाने कितनी पीढ़ियाँ
ऐसे ही जुटी रहीं महल व मंदिर बनाने में
लेकिन मेरा संघर्ष जारी है
किसी ऐसे मंदिर या महल की तलाश में
जिस पर लिखा हो
उस मजदूर का नाम
जिसने दी उसे इतनी भव्यता !!
कृष्ण कुमार यादव/ KK Yadav
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के.के.यादव,
विशेष दिवस
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