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मंगलवार, 12 मई 2009

फूलों की सुन्दरता को महसूस तो करें !!

जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हमारे अंदर एक बाग खिल रहा होता है । फूल संसार में हर आदमी को सुंदर नही लगते , इस संसार मंे हर आदमी फूलो को देखता भी नही है । फूलो को वही निहारता है जो स्वयं अंदर से कोमल हो । क्रोधी और जिद्धी इंसान को फूल कभी प्रभावित नही करते। फूलो की सुंदरता आप के भीतर पहले से माजूद होनी चाहिये । फूलो को देखने का नियम है कि इन्हे आंख से नही मन से देखा जाता है । आंख का कोई मन नही होता लेकिन मन की अपनी आंख होती है । जो व्यक्ति अंदर से सूखा है उसे नदी का प्रवाह कभी गीला नही करता। अर्थ शास्त्र का छात्र फूल को तोड़ता है, दर्शन शास्त्र का छात्र उसे दूर से निहारता है । कुछ लोग एैसे होते है जिन्हे राह चलते किसी घर की मुंड़ेर पर खिला फूल दिखाई दे देता है और कुछ लोग एैसे होते है जिन्हे बाग में भी फूल दिखाई नही देता । बगीचे मंे उन्हे कीचड़ दिखाई देता है ,टूटी हुई बेंच दिखाई देती है ,फैला हुआ कचरा दिखाई देता है,फल्ली वाला दिखाई देता है , फुग्गे वाला दिखाई देता है, अंधेरे में बैठा जोड़ा तक दिखाई दे देता है लेकिन फूल जो वहां सबसे ज्यादा मात्रा में है वे दिखाई नही देते । यह देखने का संकट सम्पूर्ण विश्व मंे तेज़ी से पैर पसार रहा है । दरअसल वास्तव मंे यह विचारधारा का संकट है । विचार हीन व्यक्ति बाग मंे भी फूलो की सुंदरता को नही देख पाता है जबकि विचारवान व्यक्ति केे अंदर ही एक बाग मौजूद रहता है जिसमें सोच के फूल खिले रहते है ।

खिला हुआ फूल प्रकाशित कविता है जिसके रचियता भगवान है,यह एैसी रचना है जिसकी समीक्षा तो की जा सकती है लेकिन आलोचना नही । बनावट ,आकार , रंग , सुगंध इन सब का मि़श्रण फूल में इतना ज़बरदस्त होता है कि कला प्रेमियो को चाहिये कि वे सामूहिक रूप से पौधो के सामने खड़े होकर भगवान के सम्मान में ताली बजाये । फूल कुदरत के कारखाने का अदभुद प्रोड़क्ट है, लेकिन बाज़ार का आयटम नही । इसे मन के गमले मंे उगाया जाता है पैसे देकर खरीदा नही जाता । उगाया गया फूल प्रेमिका है और खरीदा गया फूल वैश्या । बनावट ,आकार,रंग और सुगंध के आगे भी फूल की और बहुत से विशेषताए है जो उसके फूलपन को बरकरार रखती है । फूल पाठशाला है, जहां सुगंध फैलाने का पाठ पढ़ाया जाता है । फूल को देखने का सुख , सब सुखो में श्रेष्ठतम सुख है । जिस समय हम फूल को देखते है उस समय हम भगवान का ध्यान कर रहे होते है । जब हम कोई अच्छी फिल्म देख रहे होते है तब हमारे ज़हन में उसके निर्देशक का विचार भी आता रहता है । कविता पढ़ते समय उससे कवि को अलग नही किया जा सकता । फूल को देखना एक सुंदर अहसास है और फूल को देखते हुए आदमी को देखना सुंदरतम । फूल लघु पत्रिका है ,कला फिल्म है । ज़ाकिर हुर्सन का तबला है ,बिसमिल्ला खां की शहनाई है फूल । समय के जिस क्षण में हम फूल को देख रहे होते है वह क्षण जीवन के तमाम क्षणो में सबसे महत्वपूर्ण और कीमती क्षण होता है क्योकि उस क्षण हम ज़रा रूमानी हो जाते है ,लचीले हो जाते है ,भावुक हो जाते है,उस समय हमारा दंभ मर चुका होता है हमारी लालच मिट चुकी होती है,आंखो से गुस्सा गुम हो चुका होता है और हाठो पर मुस्कान विराज चुकी होती है । यही तो वो भाव है जो हमारे इंसान होने को सार्थक करते है । बगीचे में टाईम पास करने के लिये आते है वे आदमी है लेकिन उन में से फूल से जुड़ जाते है वे इंसान है । हम पैदा भले आदमी के रूप में हो पर मरना इंसान बन कर चाहिये ।

उपर चांद और नीचे फूल । भगवान की ये दो अनुपम कृति आस्था के संेसेक्स में ज़बरदस्त उछाल दर्ज कराती है। अरबो खरबो की लागत से भी एैसा कारखाना स्थापित नही किया जा सकता जिसमें फूलो का उत्पादन हो सकता हो । फूल हमंे आस्तिक बनाते है उससे बड़ी बात ये है कि फूल हमें बेहतर इंसान बनाते है । फूल प्रेम को जगाते है ,प्रेम का अहसास कराते है ,दो हृदय को जोड़ते है ं। रिश्तो की नदी पर पुल बन जाते है फूल । फूल खिल खिल कर कह रहे है - कोमल बनिये , सुगंध बिखेरिये । फूलो की इस अपील पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिये, उनके आव्हान पर चल पड़ना चाहिये । कोमलता फूल की वाणी है,सुगंध उसकी भाषा । फूलो की भाषा सीखना होगा क्योकि इसमें रस है । मंच पर किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति का सम्मान उसे फूल देकर किया जाता है । गांव की लड़की सज संवर कर एक फूल अपने बालो मे लगा लेती है ये फूल का सम्मान है । फूल की व्याख्या उतनी आसान नही है जितनी उसकी उपलब्धता है ं। फूलो की अपनी दुनियाॅ है ,अपना इतिहास है,अपना अनुशासन है,अपना संविधान है । फूलो की संसद कभी प्रस्ताव पारित कर खुश्बू के संविधान में संशोधन नही करती । ये फूलो का चरित्र ही है जिसने गुलशन को शोहरत दिलाई है । नफ़रत के अनेको कारणो का जवाब है फूल। फूल लयात्मक गीत है, तुकान्त कविता है, मौसम के पन्ने पर लिखा नवगीत है । गुलशन के दफ्तर में फूल की नियुक्ति ने सुगंध को अंतराष्ट्र्ीय पहचान दिलाई है । अगर आपने कभी फूल को फूल के अंदाज़ में नही देखा होगा तो आज ही यह सौभाग्य प्राप्त करिये,समय का कोई भरोसा नही । इससे पहले की लोग आप पर फूल ड़ाले आप फूल पर न्योछावर हो जाईये । उठिये और बिना समय गंवाए नज़दीक के बाग में जाईये,और अनेको बार देखे हुए उन फूलो को मेरी नज़र से देखिये आपको फूल मंगल गीत गाते हुए दिखाई देगे । फूल बोलते हुए , झूमते हुए ,नाचते हुए दिखाई देगे । उस समय आपको सब बदला बदला दिखाई देगा । दरअसल यह परिवर्तन उस समय आपके अंदर हो रहा होगा । कुछ ही क्षण में आपको एैसा लगेगा कि आप स्वयं एक फूल हो गये है।

जिस समय आप फूल को देख रहे होते है उस समय आप वो नही रहते है जो आप है, बल्कि उस समय आप जो नही है वो हो जाते हो । नही होने का हो जाना ही क्रंाति है और ये क्रांति एक क्षण मंे हो जाती है । एकाएक आपको पूरी दुनियाॅ सुंदर महसूस होने लगती है ,सब से प्रेम करने का मन करने लगता है । लालच आस पास भी नही फटकती । भाषा एक दम शालीन हो जाती है । बच्चो और नौकरो पर चीखने वाला व्यक्ति गाने लगता है । जीवन के चित्र में फूल रंग भर देते है । फूलो में सिर्फ शिल्प ही नही है उनका कथ्य भी है । फूल जीवन की सार्थकता समझा जाते है । आप महसूस करिये ये समूचा विश्व एक बगीचा है इसमें रंग रंग के फूल खिले है और आप इसके माली है । आप उन पौधो को सीचो जिसमें फूल खिलते है,एक दिन आप महसूस करोगे कि आपके अंदर एक उपवन आकार ले रहा है । आपकी सोच बदल जायेगी ,आपके शब्द नये अर्थ देने लगेगे , आप जहां भी जाओगे वातावरण को सुगंधित कर दोगे । आप एैसे मुकाम पर पहुच जाओेगे जहा फूलो की भाषा समझ में आने लगेगी । तब आप आंख बंद किये बैठे रहोगे और फूल आपको संबोधित करेगे । फूलो का व्याख्यान आपको एैसा इंसान बना देगा जिसकी दुनियाॅ को बहुत जरूरत है । आप अपना सब कुछ औरो को दे दो और उसके बदले कोई कामना मत करो, आप देखोगे कि देने के बाद भी आपका खज़ाना भरा का भरा रहेगा , ये मानव के लिये फूलो का पैग़ाम है । ये मात्र उपदेश नही बल्कि फूलो का भोगा हुआ यथार्थ है । फूलो का तो बस यही काम है कि जहां रहो उस जगह को महका दो । फूलो की कोई पार्टी नही होती ,कोई घोषणा पत्र नही होता ,कोई प्रशिक्षण शिविर नही होता । इन्हे सिर्फ देना आता है,इनके पास जो भी होता है वह उसे औरो पर उंड़ेल देते है और खाली होते ही पुनः भर जाते है । वही भरायेगा जो खाली है । खाली होकर भर जाने का यह फार्मूला हर क्षेत्र मं लागू होता है ।

फूलो की सफलता उनके स्वभाव में छिपी है । फूलो के स्वभाव में सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इनमंे नरमी बहुत सख्ती के साथ शामिल है । अपने इस स्वभाव को फूल कभी नही छोड़ते चाहे जो हो जाये और दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सिर्फ देना जानते है ,औरो के काम आना जानते है उसके बदले में ये कोई आशा नही करते । ड़ाल पर खिला फूल सिर्फ फूल नही है बल्कि वह मंच पर बैठा संत है जो प्रवचन दे रहा है । हमें उससे लौ लगानी होगी ,उसको आत्मसात करना होगा, उसकी खुश्बू में सराबोर हो जाना होगा,उसके रंग में रंग जाना होगा, खुद को उसके स्वभाव में ढ़ालना होगा, दूसरे के काम आने के लिये अपनी ड़ाल से बिछड़ जाना होगा । साथियो स्वयं कों फूलमय कर दो , ज़िन्दगी के बाग़ में अच्छाई के फूल बन कर खिल जाओ , दुनिया को प्रेम के रंग में रंग दो ,सहयोग और त्याग की सुगंध बनकर समूची पृथ्वी में फैल जाओ । तुम अपने को टटोलो तुम्हारे अंदर अनंत संभावनाये है । तुम क्या नही कर सकते ? तुम सब कुछ कर सकते हो क्योकि तुम भगवान की अनुपम कृति हो । चित्रकार ,कथाकार ,संगीतकार , फिल्मकार सबको अपनी कृति प्रिय होती है तो क्या भगवान को अपनी इस कृति से प्रेम नही होगा ? ज़रा सोचिये जिसे भगवान प्रेम करे उसकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ जाती है ? दोस्तो बहुत देर हो चुकी है अब और बैठना ठीक नही, फूलो की दिखाई राह पर चल पड़ो । तुम दुनियाॅ में नही - तुम में दुनिया होनी चाहिये । तुम्हारे अंदर मानवीय स्वभाव है इस स्वभाव को छोड़ना नही । इसी के दम पर तुम्हे साबित करना होगा कि ज़िंदगी के बाग़ में तुम्ही गंेदा हो ,चमेली हो , गुलाब हो ।

अख्तर अली फ़ज़ली अपार्टमेन्ट, आमानाका कुकुरबेड़ा,रायपुर (छ॰ग॰)मो॰ 9826126781 / akhterspritwala@yahoo.co.in

3 टिप्‍पणियां:

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Phulon ki sugandh ko samaj men bikherta ek sundar alekh.

RAJNISH PARIHAR ने कहा…

bzhut hi sundar aur foolo si mahak bikherta ....

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

Waw! kya khushbu hai !!