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सोमवार, 13 अप्रैल 2009

ग़ज़ल

सभी सरसब्ज मौसम के नये सपने दिखाते हैं
हमें मालूम है वो किस तरह वादे निभाते हैं।
इलेक्शन में हुनर, जादूगरी सब देखिए इनकी
ये हर भाषण में सड़कें और टूटे पुल बनाते हैं।
चलो मिल जायेगी अब वक्त पे दो वक्त की रोटी
हम इस मकसद से जिन्दाबाद के नारे लगाते हैं।
हमारा सच कभी देखा नहीं है इनकी आँखों ने
हमारे रहनुमा किस रंग का चश्मा लगाते हैं।
अभी हर शख्स के घर का पता मालूम है इनको
सदन में जाके ये पूरा इलाका भूल जाते हैं।
पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है?
हमें हर बार ये देखा हुआ सर्कस दिखाते हैं।
हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुँचते हैं
जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार जाते हैं।
वो साहब हैं उन्हें हर काम के खातिर है चपरासी
हम अपना बोझ अपने हाथ से सिर पर उठाते हैं।
तबाही देखते हैं वो हमारी वायुयानों से
हम दरिया में बिना कश्ती के ही गोता लगाते हैं।
जो सत्ता में हैं वो सूरज उगा लेते हैं रातों को
हमारे घर दिये बस सांझ को ही टिमटिमाते हैं।
भँवर में घूमती कश्ती के हम ऐसे मुसाफिर हैं
न हम इस पार आते हैं न हम उस पार जाते हैं।
ये संसद हो गयी बाजार इसके मायने क्या हैं?
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं।

जयकृष्ण राय तुषार
63 जी/7, बेली कालोनी, स्टैनली रोड, इलाहाबाद
मो0: 9415898913

7 टिप्‍पणियां:

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

Bahut umda gazal hai.

बेनामी ने कहा…

पुरानी साइकिल, हाथी, कमल, पंजा नया क्या है?

शरद कुमार ने कहा…

चुनावी माहौल में सुन्दर ग़ज़ल. तुषार साहब को बधाई.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

Bahut khub.

SUNIL KUMAR SONU ने कहा…

bahut bhub kahi aapne

KK Yadav ने कहा…

ये संसद हो गयी बाजार इसके मायने क्या हैं?
बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं।
....बहुत कड़वी सच्चाई है...पर इसका कोई तरीका भी तो खोजना होगा.

शरद कुमार ने कहा…

Tushar sahab apki anya gazalon ka intzar.